तपन | Kavita Tapan
तपन
( Tapan )
कितनी प्यारी सी तपन भरी थी उनकी मुस्कान में
फरिश्ता सी लगने लगी हमें भीड़ भरे जहान में
मदद को बढ़ा दिए हाथ साथ दे दिया जीवन में
उनके प्यार की तपन से खिल गए फूल चमन में
महकी फुलवारी सारी प्रीत भरी बयार बहने लगी
सद्भावों की बह धाराएं मधुर स्वरों में कहने लगी
प्यार की अगन जगे तो रोशन हो जाए जग सारा
मीरा सी लगन से लगे माधव बंशी वाला प्यारा
संस्कारों की तपन से आचरणों को बल मिलता
बुजुर्गों के अनुभवों से समस्या का हल निकलता
आग में तप कर ही सोना जब कुंदन बन जाता है
रत्न जड़ित आभूषणों में चार चांद लग जाता है
त्याग तपस्या भावों से भारत भूमि का कण महके
जहां स्नेह वर्षा होती भावों का उड़ता पंछी चहके
नेह भरी तपन से जीवन औरों का भी संवार लो
जिसका दुनिया में कोई नहीं थोड़ा स्नेह दुलार दो
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )