आओ करें बागवानी
आओ करें बागवानी

आओ करें बागवानी

( Aao Kare Bagwani )

 

डाल-डाल चिड़िया चहके,
ताल-तलइया पानी।
कल-कल करके बहती नदिया,
गाँव करे अगवानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी।

पेड़ न रोने पाएँ कहीं पे,
इसपे नजर गड़ाना।
छाँव न घटने पाए धरा पे,
मिलकर इसे बचाना।
आओ करें बागवानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

कंक्रीट के जंगल में,
अमराई नहीं मिलेगी।
जमीं-खेत से शहर उगेंगे,
पुरवाई नहीं मिलेगी।
मिलकर फिजा बनानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

मधुरस घोलती कोयल दिल में,
दबे न उसकी कूक।
आमोद-प्रमोद में जीवन बीते,
उठाये दिल में हूक।
दुनिया उसकी दीवानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

नया श्रृंगार करेंगे जंगल,
जंगल में होगा मंगल।
स्वस्थ्य, नीरोगी रहेगी जनता,
होता रहेगा दंगल।
बरसेगी बरखा-रानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

तरुवर की शाखों पे बच्चे,
झूलेंगे तब झूला।
धन-संचय के चक्कर में मानव,
क्यों अपनी जड़ भूला।
जरा बरतो सावधानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

मत काटो पर्वत की बाँहें,
नभ तक उसको उठने दो।
तप-त्याग-संयम की चादर,
बढ़े उसे तो बढ़ने दो।
है मिट्टी मेरी बलिदानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

इंद्रधनुष के रंगों में,
रंग जाए ये जग सारा।
सज जाए जीवन की डाली,
कम न हमें गँवारा।
रगो में रहे रवानी,
जग की रीति पुरानी,
अमिट हो अपनी निशानी,
जग की रीति पुरानी।

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )

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