तुम तुम हि हो | Kavita Tum Tum Hi Ho
तुम तुम हि हो
( Tum Tum Hi Ho )
कौन कहाँ है, कितनी दूर है
पहुुंचेगा कब
यह आपका नही उसका विषय है
आप कहाँ हो कितनी दूर हो और पहुँचना कैसे है
यह तुम्हे स्वयं सोचना है, क्योंकि
मंजिल तुम्हारी है
जीतना या पराजित होना तुम्हे है
और की देखा देखी मे
जीत भी शामिल है और हार भी शर्त भी जरूरी है और संकल्प भी
साथ भी जरूरी है और सहयोग भी
इंतजार भी जरूरी है और दौड़ भी मगर
समझौता कोई भी हो
बाधक से मित्रता नही होती
लक्ष्य एक हो सकते हैं
किंतु,, जरिया और गतिशीलता मे
भिन्नता स्वासभाविक है जरूरत और जिद्द में भिन्नता स्वभाविक है
सोच और विचारों में भिन्नता जरूरी है
सभी के साथ होकर भी
स्वयं में आप अकेले हैं
अपने निर्णय मे आप अकेले हैं
अपने स्वप्न मे आप अकेले हैं
और इस, अकेलेपन के साथ भी
जीत भी तुम्हें हि
हासिल भी करनी है
सभी से आगे भी तुम्हें हि निकलना है
आपकी अपनी जिम्मेदारी भी तुम्हारी है
और तुम तुम हि हो
अब, सोचिये की तुम कहाँ हो
कितनी दूर हो
और पहुँचना कब है
( मुंबई )
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