वजह | Kavita wajah
वजह
( Wajah )
बेवजह परेशान हो रहे खूब बढ़ गई महंगाई।
इसी वजह से घूस बढ़ रही बढ़ रही है तन्हाई।
मजदूरी की रेट बढ़ गई झूठा रोना रोते क्यों।
कहो वजह सड़कों पे जा धरनो में सोते क्यों।
हर चीजों के दाम बढ़े तो वेतन बढ़ा हुआ पाया।
आमदनी अनुकूल प्यारे खर्चों में ईजाफा आया।
कान इधर से पकड़ो चाहे कान उधर से देख लो।
बिना वजह हंगामा करके अपनी रोटी सेंक लो।
क्या जमाना आया देखो मतलब का बाजार है।
बिना वजह मतभेद बढ़े होती फिर तकरार है।
जहां प्रेम की गंगा बहती हृदय उमड़ता प्यार सदा।
इसी वजह से प्रित का दिलों में आता ज्वार सदा।
जनमन में सद्भावों की हमको वजह बन जाना है।
प्यार भरे मोती प्रेम के सबके दिल में बसाना है।
फूल खिले उन वादियों में खुशबूओं का डेरा हो।
हर दिल में आनंद मौज का हृदय प्रेम घनेरा हो।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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