Sahitya Samaj par Kavita
Sahitya Samaj par Kavita

समय के साथ साहित्य समाज बदलता है

( Samay ke sath sahitya samaj badalta hai ) 

 

वक्त के साथ बदल जाती है सब की जीवनधारा।
समय के साथ साहित्य बदले संग समाज हमारा।

बदल रहे हैं तौर-तरीके बदला अपनापन प्यारा।
बदल रही शिक्षा नीति सभ्यता संस्कार हमारा।

बदल रही सब बयार बसंती स्नेह सुधा रस धारा।
लेखनी की धार बदली बहती भक्ति काव्य धारा।

बदल रहे समीकरण सारे राजनीति के मोहरे।
शतरंजी चाले भी बदली नेताजी के वादे दोहरे।

बदल रहे गांव शहर रिश्तो नातों की वो डोर।
बदल रही शामे सुहानी नव जीवन की भोर।

बदल रही जीवन की राहें बदला आलम सारा।
बदल गया आज आदमी सुंदर परिवेश हमारा।

गीत गजल धुन बदली संगीत बदल गया सारा।
रुख बदला हवाएं बदली सुरीला अंदाज हमारा।

नैन नक्श सारे बदल गए बदला है तुन तुन तारा।
अपनी डफली राग अपना बदला समाज सारा।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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