खामोशी | Khamoshi Shayari
खामोशी
( Khamoshi )
नहीं कुछ भी है कहने को तो ओढ़ी आज खामोशी
ज़रा सुनिए तड़पते दिल की है आवाज़ खामोशी।
समंदर सी है गहरी जलजले कितने समेटे है
छुपाए है हज़ारों ग़म हज़ारों राज़ खामोशी।
नहीं लब से कहा उसने मगर सब कुछ बयां करती
वो उसका हाले दिल बदले हुए अंदाज़ खामोशी।
ख़ुदाया शोर है कितना कहा आकर कभी तो मिल
मगर मिलती नहीं लगता है कुछ नाराज़ खामोशी।
जरूरी है बहुत इज़हार उल्फ़त में मगर यारों
है ये भी सच की रख लेती भरम हमराज़ खामोशी।
कभी तन्हाइयों में बात करके देखिए इससे
लगा के पर बना देती है ये परवाज़ खामोशी।
नयन कहती गज़ल सुनती तबीयत से बहुत अक्सर
कभी लगती तरन्नुम सी कभी है साज़ खामोशी
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )