खेलते थे गांव में कंचे बहुत
खेलते थे गांव में गुल्ली डंडा कंचे बहुत
शहर में नफ़रत मिली है खेलने को देखिए
गांव में है प्यार मेरे हर घड़ी नफ़रत नहीं
इस कदर है शहर में ही बस अदावत के शोले
शहर में ऐसा नहीं होता जरा भी देखिए
मेले लगते मोर नाचें गांव के गलयारो में
दोस्त बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते है ये
खूब खायी है जलेबी ओ पकौड़ी गांव में
वो मुहब्बत शहर में मिलती नहीं है लोगों में
हर दिलों में सिर्फ़ है उल्फ़त हमारे गांव मे
शहर के अच्छे नहीं है इशारे देखले
दोस्त चल तू है वफ़ाओ के इशारे गांव में
गांव में चल साथ आज़म के नगर से दोस्त तू
चिडियों की चहके हमको ही पुकारें गांव में
❣️
शायर: आज़म नैय्यर
( सहारनपुर )