ख़ुशी का हर घड़ी मातम हुआ है
नहीं दिल से मेरे, गम कम हुआ है
ख़ुशी का हर घड़ी मातम हुआ है
मुहब्बत दोस्ती सब ख़त्म रिश्ते
अदावत का बुलन्द परचम हुआ है
हवाएं बन्द हैं प्यारो वफ़ा की
के नफ़रत का शुरू मौसम हुआ है
ख़ुशी से हर घड़ी जो हँसता रहता
वो चेहरा अश्क से क्यों नम हुआ है
ज़बाने शीर से ये तल्ख लहज़ा
यकीं मानो बहुत ही ग़म हुआ है
गया वो तोड़कर कल दोस्ती को
अकेला जीस्त में आज़म हुआ है
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