Ghazal | ख़्वाब में आकर सताये ख़ूब कोई
ख़्वाब में आकर सताये ख़ूब कोई
( Khwab mein aakar sataye khoob koi )
ख़्वाब में आकर सताये ख़ूब कोई
नीद से इतना जगाये ख़ूब कोई
नफ़रत की सुनली जुबां मैंनें बहुत है
गीत उल्फ़त के सुनाये ख़ूब कोई
प्यासा हूँ मैं तो मुहब्बत का बरसो से
प्यास उल्फ़त की बुझाये ख़ूब कोई
ग़ैर आँखें तो बहुत सी देखली है
प्यार की आँखें मिलाये ख़ूब कोई
दूर हो जाये उदासीपन लबों का
प्यार से मुझको हंसाये ख़ूब कोई
जिंदगी की दूर हो जाये तन्हाई
दोस्त अपना ही बनाये ख़ूब कोई
भूल जाऊं मैं उसे जो जिंदगी भर
मयकशी “आज़म” पिलाये ख़ूब कोई