किस मूरत को हम पूजे
किस मूरत को हम पूजे
किस मूरत को हम पूजे, जिसमें प्राण प्रतिष्ठा है।
या मन मन्दिर में मेरे जो, जिसमें मेरी निष्ठा है।।१
बिना प्राण की मूरत पूजे,क्या मुझको फल देगी ।
मेरी विनय पुकार सुनेगी, मेरे कष्टों का हल देगी।।२
जिस मूरत में प्राण भरा है ,वह मूरत क्या सच्ची है ।
जिसमें भाव हमारा है ,वह मूरत क्या कच्ची है।।३
घर घर में है सबके मूरत, कितनो में प्राण समाए हैं।
उसमे क्या कोई देव नहीं,जो बिना प्राण अपनाए हैं।।४
जिस मूरत में प्राण भरा है, वह भी ना कुछ बोले।
जिस मूरत में प्राण नहीं है ,वह भी ना कुछ डोले।।५
मन का भ्रम मिटाए कोई, कैसा प्राण का मंतर है।
प्राणहीन और प्राण युक्त में ,दिखे ना कोई अंतर है।।६
हे ज्ञानी जन मुझे बताओ, किस मूरत में शक्ति है ।
जिसमें प्राण प्रतिष्ठा है ,या जिसमें मेरी भक्ति है ।।७
कहां मिलेगा वह मानव, जो मूरत में है डाले प्रान।
क्यों नहीं जीवन देता,जिसका काल निकाले प्रान।।८
कितनी बात अनोखी है,कितना अद्भुत मानव ज्ञान ।
जिस ईश्वर ने उसे बनाया , उसी में डाले मानव प्रान ।।९