कितनी दीवारें खड़ी करते हो | Kitni Diwaren
कितनी दीवारें खड़ी करते हो
( Kitni diwaren khadi karte ho )
जितनी दीवारें खड़ी करते हो उतनी ढहाना होगा।
घृणा को छोड़कर हमें परोपकार अपनाना होगा।
जितनी नफरत करते हो उतना प्रेम बहाना होगा।
किसी भटके हुए राही को भाई गले लगाना होगा।
जितने धरा पे जन्म लेते फिर उतनो को जाना होगा।
आना-जाना नियम सृष्टि अंतिम एक ठिकाना होगा।
जितनी उपलब्धि पाओ उतना संभल जाना होगा।
उड़ाने पंखों की जान से फिर धरा पे आना होगा।
जितने शब्द सुरीले प्यारे उतना ही मुस्काना होगा।
महफिल महक उठेगी प्यारा सा इक तराना होगा।
जितना लिया जमाने से उतना ही लौटाना होगा।
सब कुछ छोड़ खाली मुट्ठी इक दिन जाना होगा।
जितने विकार घट भरे उतने तजकर जाना होगा।
कंचन सी काया बने भाव सुमन बरसाना होगा।
जितना सुख चाहो मित्रवर उतना प्यार लुटाना होगा।
दिल की बस्ती में हंस हंसकर जीवन बिताना होगा।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )