दर्द ए दास्तां कोयल की | Koyal par Kavita
दर्द ए दास्तां कोयल की
( Dard – e – dastan koyal ki )
दर्द ए दास्तां कोयल बोली ईश्वर ने दी प्यारी बोली।
रंग तो काला कर डाला कैसी खेली आंख मिचोली।
कोई कहे बसंत की रानी मधुर तान लगती सुहानी।
रंग वर्ण मोहे श्याम मिला शर्म से हो गई पानी पानी।
तन काला है मन पावन है बोली तेरी मनभावन है।
बाग बगीचे मधुरागिनी दौड़ा आता जब सावन है।
रंग वर्ण अभिमान जगाए मन की मधुरता हर जाए।
फूल खिले फागुन हरसाए कुक तेरी मन को भाए।
मधुर स्वर मधु भाषी काली कोयलिया गाती है।
सुर संगीत लगे सुहाना कोयल राग सुनाती है।
डाली डाली पत्ता पत्ता तरूवर तब हर्षाता है।
स्वर कोकिला कूके तब झूम-झूम मुस्काता है।
वन उपवन सारे खिल जाए मस्त बहारें बयार आए।
मीठी मीठी बोले कोयल मिश्री सी मन में घुल जाए।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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