चक्रधारी यशोदा का लाल

( Chakradhari yashoda ka laal ) 

 

एक वो ही है सबका पालनहार,
प्रभु ,परमपिता और तारणहार।
हर कण-कण में आप विद्यमान,
दुष्टों का करते हो पल में संहार।।

श्री राम बनकर रावण को मारा,
और कृष्ण बनकर कंस पछाड़ा।
तुम्हारी माया का पाया नही पार,
लिया तुमने ही नरसिंह अवतार।।

तू गिरधर व गोपियों का गोपाल,
तू ही मुरलीधर और है नंदलाल।
तुमे शत-शत नमन मेरे भगवान,
चक्रधारी तू ही यशोदा का लाल।।

जन्म- मरण के सारे खेल रचाएं,
धरती पर आकर प्रत्यक्ष दिखाएं।
जैसा कर्म करें वो वैसे फल पाएं,
नारायण स्वयं नर रूप धर आएं।।

जिसने मन से लिया कृष्णा नाम,
उसका बना है सब बिगड़ा काम।
तुम्हारे नाम अनेंक पर रूप एक,
तू ही ब्रह्मा विष्णु और यह महेश।।

एक तू ही है सभी का पालनहार,
जो देख रहा सब का ये व्यवहार।
मालिक किसको निर्धन है बनाना,
कौन कैसा चला रहा है कारोबार।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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