कृष्ण | Krishna Kavita Hindi
कृष्ण
( Krishna )
सूर्य से चन्द्र में आए कृष्ण,
बाल रूप दिखाए कृष्ण।
काल-कोठरी में लिए जनम,
माखन, माटी खाए कृष्ण।
ब्रह्मांड दिखाए यशोदा जी को,
नन्द की गाय चराए कृष्ण।
राधा -मीरा दोनों ने चाहा,
प्रेम की ज्योति जलाये कृष्ण।
एक दरस दीवानी, एक प्रेम दीवानी,
प्रीति का स्वाद चखाए कृष्ण।
प्रेम से जग में बड़ा नहीं कुछ,
साग विदुर घर खाए कृष्ण।
मोर- मुकुट सोहा सिर उनपे,
गोपियों की चीर चुराए कृष्ण।
अधरों के बीच टिकाकर मुरली,
किसको नहीं नचाए कृष्ण।
रास रचाए गोपियों के संग,
उनके दिल में समाए कृष्ण।
हुआ था मोहित कामदेव जब,
मदन मोहन कहलाये कृष्ण।
शंख, चक्र, पद्म, गदा लेकर,
देखो प्रगट हुए थे कृष्ण।
देवकी ने उन्हें जन्म दिया,
सूप में गोकुल आए कृष्ण।
बाट जोह रही थी यमुना मैया,
चरण उन्हें छुवाये कृष्ण।
इंद्र का घमंड तोड़ने खातिर,
गोवर्धन पहाड़ उठाए कृष्ण।
चीरहरण जब किया दुःशासन,
द्रौपदी की लाज बचाए कृष्ण।
उठ, नारी अब उठा गांडीव,
न जाने कब आएँ कृष्ण ?
अमन-शांति न समझा दुर्योधन,
महाभारत कराए कृष्ण।
गीता का ज्ञान दिए अर्जुन को,
धर्म धरा पे लाए कृष्ण।
राजसूय में उठाकर पत्तल,
हर काम श्रेष्ठ बताए कृष्ण।
होना है जो वो होकर रहेगा,
विधि का विधान दिखाए कृष्ण।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )