राजा कृष्णदेव राय | Krishnadev Rai
राजा कृष्णदेव राय
( नज़्म )
प्रजा के होंठों की मुस्कान महफूज रखते थे कृष्णदेव राय,
सहिष्णुता के धागे से सभी को बाँधे रखते थे कृष्णदेव राय।
नफरत तो उनके अंदर प्रवेश ही नहीं कर पाई थी,
मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तैयार रहते थे कृष्णदेव राय।
हिन्दू हो या मुस्लिम,दोनों को एक समान नजर से देखते थे,
वो खुद एक कवि और महान विद्वान थे कृष्णदेव राय।
प्रजा को समझते थे बस एक डाली का फूल,
काँटों को उगने भी नहीं देते थे कृष्णदेव राय।
मंदिर, गोपुर, तालाब, स्कूल, बाँध, नहर क्या -क्या नहीं बनवाये,
धर्म की रोशनी से सदा नहाते थे कृष्णदेव राय।
उसूलों की शिला पर चलना था उनका मकसद,
बिला वजह खून नहीं बहाना चाहते थे कृष्णदेव राय।
दुश्मनों से भी वो निभाते थे अच्छी -खासी दोस्ती,
अम्नों-अमन पर क़ायम रहते थे कृष्णदेव राय।
हर घर की मुंडेरों पर तब लटकती थी सुकूँ की धूप,
अच्छे सेनानायक, प्रजापालक थे कृष्णदेव राय।
अद्भुत शौर्य भरा था देखो उनके अंग-अंग में,
विक्रमादित्य की तरह करते थे न्याय कृष्णदेव राय।
बस्तियाँ जलाना,उजाड़ना उनके स्वभाव में था नहीं,
बर्बर मुगलों को बराबर धूल चटाते थे कृष्णदेव राय।
वो थे अजेय योद्धा, युद्ध लड़ना था उनके बाएँ हाथ का खेल,
देश की विरासत की रक्षा करने में तत्पर थे कृष्णदेव राय।
अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक फैला था उनका साम्राज्य,
मानों वो स्वर्णिम युग के आरम्भ थे कृष्णदेव राय।