कुमार के मुक्तक

कुमार के मुक्तक | Kumar ke muktak

कुमार के मुक्तक

( Kumar ke muktak ) 

बहते   हुए  जल   पे  कभी  काई नहीं आती,

बिना  उबले   दूध  पर   मलाई   नहीं  आती।

थोङी  बहुत  शायरी  तो  सभी  कर  लेते  हैं,

“कुमार”दर्द से गुजरे बिन गहराई नहीं आती।

कौन कहता है कि दुःख में, कोई अपना नहीं होता।

सितारे होते है कुछ लोग जिनका हमें पता नहीं होता।

दिखाई देंगे तभी वो ग़र’ जीवन में अंधकार छाये।

अहसान उनका “कुमार” वो कभी अदा नहीं होता।।

टूटी   हुई   कश्ती   से  सागर  नही तरते ।

जुगनू   के   सहारे   अंधेरे   नहीं  हटते ।।

कुछ  फूल  भी  यूं  ही  बिखरते  नहीं  है ।

देवों पे ही चढते या जंगल मे ही खिलते।।

उपेक्षा  करना  सीख लेना  सुखी जीवन का राज है।

जिसको प्यार की कदर नही उसका यही ईलाज है।।

बेपरवाह  रहकर  जग  से  मस्त  रहना  जिंदगी  में।

खुद्दारी   से   जीने   का “कुमार”  यही  अंदाज  है।।

नफ़रत है ना प्रेम कोई बनी ऐसी भावना,

“कुमार”यही तमन्ना है कभी ना हो उनसे सामना,

इल्तिज़ा है खुदा से वो फिर ना मिले दोबारा,

जो दिल में न रहा उसे दुआ में क्या मांगना !

पहले से निश्चित है होता वही है।
विधि का विधान कभी टलता नहीं है।।
अगर तू न होता कोई और होता।
भ्रम छोड़ दे सब तू कर्ता नहीं है।।

कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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