मुक्तक
मुक्तक

मुक्तक

( Muktak )

 

निर्भय  रहकर  जो  जीवन जीता है
धीरज धरकर जो गमों के घूंट पीता है
कर्म  प्रधान है इस चराचर जगत में
आत्मा  अजर  अमर  कहती गीता है

 

वक्त और हालात जिंदगी जीना सिखाते हैं
कौन  अपना  कौन  पराया  सब बताते हैं
संघर्षों से ही फौलाद बनते हैं इरादे मन के
तूफानों  से  टकराने वाले सफलता पाते हैं

 

मौत  के  मुंह  से  बचा  ले वो  भगवान होता है
दर्द औरों का न समझ सके वो नर पाषाण होता है
जिंदगी के मायने धन के पीछे भाग दौड़ ही नहीं
समय पर औरों के काम आए वही इंसान होता है

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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