क्या हुआ कैसे हुआ कितना हुआ
क्या हुआ कैसे हुआ
क्या हुआ कैसे हुआ कितना हुआ
जो हुआ वो था नहीं सोचा हुआ
फिर से रस्ते पर निकल आए हैं लोग
फिर से देखा वो ही सब देखा हूआ
दर्द तन्हाई अंधेरा सब तो हैं
मैं अकेला तो नहीं बैठा हुआ
उड़ गयी उल्फ़त किसी दीवार से
धूप में धुंधला गया लिख्खा हुआ
इक रियासत थी ये तेरे यार की
सामने जो है ये सब उजड़ा हुआ
आपने तो ख़ूब फ़ूंकी थी न छांच
आपके भी साथ में धोखा हुआ
काश क्या है पल है जीवन का ‘असद’
रह गया जो हाथ से छूटा हुआ

असद अकबराबादी