क्या कहना
क्या कहना
सरस सरगम सुधा सी सुंगधित बयार क्या कहना।
चलन चपला सी चंचल छन छनन झंकार क्या कहना।।
विकट लट की घटा की छटा न्यारी,
कशिश ऐसी अनुचरी प्रकृति है सारी,
घूंघट पट अपट अनुपम निष्कपट श्रृंगार क्या कहना।।
कमल दल विकल लखि अधरन की आभा,
रंक जग है तुम्हारा और तुम प्रलाभा,
ये बासंतिक सुमन अपलक चुभन हरबार क्या कहना।।
करधनी कटि में विलसित कडा़ कंगन पर चढ़ा था,,
वो पहुंची आज तक पहुंची नहीं जिसपर अड़ा था
किंकिड़ी कर रही झुमकी नौलखा हार क्या कहना।।
मुकुट मुक्ता जड़ित मणि कनक की थैली हुयी है,
नूपूर ध्वनि स्वर्ग तक चिरकाल से फैली हुई है,
नगों को भी झुका दे शेष वह संस्कार क्या कहना।।
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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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