Kyon ki main paraya dhan hoon
Kyon ki main paraya dhan hoon

क्योंकि मैं पराया धन हूं

( Kyon ki main paraya dhan hoon )

 

 

मां बेटे की हर पिड़ा पे तेरा दिल पिघलता है।
और मेरी पिड़ा पर जरा भी दिल नहीं दहलता है।
क्योंकि मैं पराया धन हूं।
बेटी  की विदाई पर दिल पर पत्थर रख देती है।
बेटा शाम तक घर ना आए सारा घर सर पर उठा देती है।
मां बेटे की हर पीड़ा पे तेरा दिल पिघलता है
और मेरी हर पीड़ा पर जरा भी दिल नहीं दहलता है।
 क्योंकि मैं पराया धन हूं।
मां कोख में तो बराबर का दर्जा मिलता है।
मगर इस बेरुखी दुनिया में आकर क्यों भेद भाव मिलता है।
मां के लिए बच्चे तो बराबर होते हैं,
 फिर क्यों
कन्या दान का हिस्सा और बेटा जागीर का हिस्सा होता है।
मां बेटे की हर पीड़ा से तेरा दिल पिघलता है।
 और मेरी पिड़ा पर जरा भी दिल नहीं दहलता है।
 क्योंकि मैं पराया धन हूं।
“मायके व ससुराल के बीच जिंदगी झूलती है।
 तेरे पास आने के लिए बहुत मुश्किल से छुट्टी मिलती है ।
जिम्मेदारियों की बेड़ियां दहलीज पार करने नहीं देती।
तेरी हर एक आवाज मुझे सोने नहीं देती।

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लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड

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