लबों पर रोज़ ये चर्चा रहा है
( Labon par roz ye charcha raha hai )
लबों पर रोज़ ये चर्चा रहा है
उसी से अब नहीं रिश्ता रहा है
नहीं वो पास में ये ही सही अब
ग़ज़ल मैं याद में सुनता रहा है
मिली है कब वफ़ा सच्ची किसी से
वफ़ा में चोट ही खाता रहा है
बहुत कोशिश उसे की भूलने की
वो आता याद हर लम्हा रहा है
पराया हो गया वो उम्रभर अब
नहीं वो जीस्त में अपना रहा है
कभी देखा नहीं है प्यार से ही
दिखाता वो ख़फ़ा चेहरा रहा है
दग़ा करता रहा वो साथ आज़म
वफ़ाए में जिसे देता रहा है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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