लता सेन की कविताएं | Lata Sen Hindi Poetry
वह औरत है, वह नारी है वह नारी शक्ति है
यह माॅं भी है, बेटी भी है,बहन भी है किसी की,
बड़े शौक से सजती हुई दुल्हन भी है किसी की।
कोई पूजता, कोई चाहता, कोई अदब से पुकारता,
कोई कोसता, कोई तोड़ता, कोई राक्षस सा प्रताड़ता।
कोई इश्क की मूरत बना कर, घर में अपने जोड़ता,
कोई कुछ पलों का भोग करके, बेदर्दी से छोड़ता।
बरसों पुराने घर को, छोड़ने की रित है,
पर क्यों भला बस इसके हिस्से में, बिरहा के गीत है।
यह प्यार है, यह दुलार है, यह जिंदगी का श्रृंगार है,
ममता भरे हाथों में फिर क्यों, बस दुखों का हार है।
यह पिता से सहमी हुई, भाई से डरती हुई,
यह पिया के संग खामोश सी, ससुराल में दबती हुई।
बच्चों को अपने पालती, शौक कितने हंस के टालती,
देखो वह झुक के पटक गई, जो कभी हंसी की डाल थी।
क्युॅं कुछ नहीं कहती हो तुम, क्युॅं सब से युॅं सहती हो तुम,
तुममें भी तो कुछ जान है, अपनी भी एक पहचान है।
तुमसे है जग यह जान लो, बड़ी कीमती हो यह मान लो,
तुम बिन यहां सब व्यर्थ है, तुम हो तो सब में अर्थ है।
जिसने यह सृष्टि श्रृंगारी है, वह औरत है वह नारी है
नारी शक्ति तुझको सलाम है, हर पुरुष पर तू भारी है।
शिव शक्ति विवाह
अति पावन शुभ दिन आया,
शिव शक्ति के विवाह के बेला लाया।
कौमारी कन्या हिम की अति सुंदर,
बिखरी छटा प्रकृति ने मनभावन।
आई मंगल घड़ी ,वेद उच्चारण ,
बजने लगे शंख ध्वनि पावन।
सुरभिऊ सुगंधित महकी लताएं ,
चंहू दिशा आनंदित हो पुष्प वर्षाएं ।
माथे चंद्र सर्पमालाओ से सजे शंभू,
लिए संग त्रिशूल नरमुंड डमरू।
भूत प्रेत पिशाच है भभुत उड़ाते
बाघंबर लपेटे शिव मंद मंद मुस्काते।
बारात आई जब हिमालय राज के द्वार,
माता नैना हुई अचंभित बारंबार।
रूपवती पुत्री के भाग्य में क्या लिखा है
बावलापति विधाता ने क्यों लिख दिया है।
माता के दुख को बेटी ने पहचाना,
स्वयं विधाता संग मां मुझे है जाना।
आरंभ भयी तब आरती परछन,
गाए मंगल गीत सब ऋषि मुनिवर।
शिव शक्ति का अनोखा बंधन
संपन्न हुआ प्रेम विवाह प्रथम।
आशीष बधाइयां देते परिजन,
पुन: लौटे कैलाश पर दांपत्य जीवन।
मकसद
एक मोड़ पर एक शख्स से टकराना।
दूसरे मोड़ पर फिर दूसरे से रूबरू हो जाना।
हर बढ़ते कदम पर एक नए चेहरे का जीवन में आना ।
मुश्किल तो है हर मुलाकात का कारण जान पाना।
सोचने पर मजबूर करता है यूं किसी से मिलना।
चूंकि आसान भी नहीं सिर्फ सहयोग करार पाना।
मान भी कैसे लूॅं कि नहीं है मकसद कोई,
जीवन जीने के पहलू और कहां से जान पाते हैं यूॅं ही?
कुछ मिलन लंबे टिक जाते हैं।
तो कुछ चंद पलों में ही खो से जाते हैं।
ये मुलाकातों के सिलसिले,
फिर इसी ख्याल को दोहराते हैं।
जीवन हो या विश्वास
यह सचमुच नजरिए बदल जाते हैं
अंजान ख्यालों के बीच,
ये मुस्कुराहट भी देते हैं तो कुछ उदासी दे जाते हैं।
फिर तो लाजमी है शायद यह मान लेना।
कुछ अच्छे के लिए ही तो सब जिंदगी में आते हैं।
प्रेम दिवस
प्रेम ब्रह्मांड की तरह अनंत है
प्रेम मनुष्य पशु पक्षी प्रकृति किसी से भी हो सकता है।
प्रेम ही तो जिंदगी का सार है
प्रेम है तो सहा कैकेई का वनवास है।
प्रेम नहीं तो लंका बचा है क्या
भाई को अलग करके राज्य बचा है क्या।
प्रेम था तभी तो राज्य बचा श्री राम का
प्रेम था तभी तो नहीं बैठा गद्दी पर, नहीं तो धन्यवाद करता मां का।
प्रेम ही तो भाई को भाई से जोड़े हैं
प्रेम है तो धरा को मां कहते हैं।
बिना प्रेम जिंदगी में कोई रस नहीं
बिना प्रेम के गोपियों संग श्री कृष्ण की रास नहीं।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी तृप्ति आत्म बल पर निर्भर
प्रेम त्याग समर्पण बिना निष्प्राण है प्रेम पर ही तो प्राण निछावर।
14 फरवरी शहिद दिवस ( ब्लैक डे)
मातृभूमि के रुदन की आ रही करुण पुकार ।
आज है दिनपुलवामा में हुई शहादत का।
आज मेरा मन बहुत बेचैन है, क्रोध में है।
मेरे वीरों की शहादत पर दिल तड़प रहा है।
घूम रहा 14 फरवरी का मंजर मेरी आंखों में
कैसे आतंकी हमले ने ले ली जान सपूतों की
सीना फटने लगा है हर देशभक्त का आज।
वीरों का लहू धरती पर बह निकला है आज।
प्रेम दिवस पर खूनी खेल वह खेल गया।
हमारे कई वीरो को मौत के मुंह में धकेल गया।
छिन्न- भिन्न हुए टुकड़े इधर- उधर पड़े थे
कण-कण मेरा लहू से तरबतर हो गया था
रो रहा था आस्मां भी जब वह घड़ी आई थी
कई मांओ की आंखें बेटे का रास्ता देख रही होगी
कई सुहागिनें अपने पति की राह पर टक-टकी लगाई।
हर आंख नम हुई जब 40 फौजियों के शहीद होने की खबर आई।
देखकर वह नजारा कितनी धड़कन थम गई होगी
देश के उन गद्दार दुुश्मनों पर गुस्सा फूट पड़ा होगा
जिसके अंदर का इंसान मर चुका वही दरिंदा बन चुका।
आज इंसानियत पर हावी हो गई हैवानियत।
गद्दारों, देशद्रोहियों, का खात्मा अब हमें करना होगा
अब हमें वीरों की कुर्बानी का मान रखना होगा।
घोंपना होगा सीने में खंजर उन आतंकवादियों के
नींद उड़ानी होगी उनकी जिन्होंने मेरे वीरों को मौत की नींद सुलाया है।
नमन है देश के उन वीरों को जो देश के खातिर काम आए
वह तिरंगे में लिपटे हुए अमर जवान आए।
जय हिंद, जय हिंद की सेना
वह औरत है, वह नारी है वह नारी शक्ति है
यह माॅं भी है, बेटी भी है,बहन भी है किसी की,
बड़े शौक से सजती हुई दुल्हन भी है किसी की।
कोई पूजता, कोई चाहता, कोई अदब से पुकारता,
कोई कोसता, कोई तोड़ता, कोई राक्षस सा प्रताड़ना।
कोई इश्क की मूरत बना कर, घर में अपने जोड़ता,
कोई कुछ पलों का भोग करके, बेदर्दी से छोड़ता।
बरसों पुराने घर को, छोड़ने की रित है,
पर क्यों भला बस इसके हिस्से में, बिरहा के गीत है।
यह प्यार है, यह दुलार है, यह जिंदगी का श्रृंगार है,
ममता भरे हाथों में फिर क्यों, बस दुखों का हार है।
यह पिता से सहमी हुई, भाई से डरती हुई,
यह पिया के संग खामोश सी, ससुराल में दबती हुई।
बच्चों को अपने पालती, शौक कितने हंस के टालती,
देखो वह झुक के पटक गई, जो कभी हंसी की डाल थी।
क्युॅं कुछ नहीं कहती हो तुम, क्युॅं सब से युॅं सहती हो तुम,
तुममें भी तो कुछ जान है, अपनी भी एक पहचान है।
तुमसे है जग यह जान लो, बड़ी कीमती हो यह मान लो,
तुम बिन यहां सब व्यर्थ है, तुम हो तो सब में अर्थ है।
जिसने यह सृष्टि श्रृंगारी है, वह औरत है वह नारी है
नारी शक्ति तुझको सलाम है, हर पुरुष पर तो भारी है।
क्यों ? मैंने अपने कतरे पंख
एक पेड़ पर एक चिड़िया और एक चिड़ा रहते थे।
वह एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
एक दिन चिड़िया और चिड़ा किसी बात पर झगड़ रहे थे।
चिड़िया ने चिड़े से कहां तुम मुझसे बिल्कुल प्यार नहीं करते।
चिड़ा बोला तुम भी मुझसे प्यार नहीं करती हमेशा झगड़ती रहती हो।
चिड़ा बोला मैं तो अपना प्यार साबित कर सकता हूं।
चिड़िया बोली वह कैसे, चिड़ा बोला मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं।
इसलिए मैं अपने पंख कतर देता हूं।
फिर मैं कभी कहीं नहीं जाऊंगा तुम्हें छोड़कर।
और चिड़े ने अपने पंख कतर दिए।
और दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
एक दिन भयंकर आंधी तूफान आने लगा और पेड़ जोर-जोर से हिलने लगा।
चिड़िया बोली हमें यह पेड़ छोड़ना पड़ेगा।
तभी चिड़ा बोला तुम उड़ जाओ और सुरक्षित स्थान पर चली जाओ।
चिड़िया बोली तुम भी मेरे साथ चलो तब चिड़ा बोला मैं तो उड़ नहीं सकता मेरे पंख कट चुके हैं।
तुम अपनी जान बचाओ फिर चिड़िया बोली अपना ख्याल रखना कहकर वह उड़ गई।
रात भर तेज आंधी तूफान से जूझते जूझते चिड़ा वही मर गया।
सुबह जब आंधी तूफान थम गया तब चिड़िया वहां आई तो देखा चिड़ा मर चुका था।
और वहां लिखा था
मैं ही सदा तुमसे बेहद प्यार करता था।
तुम तो अपनी जान बचाने के लिए मुझे छोड़ कर चली गई।
काश!मैंने अपने पंख ना कतरे होते।
आज मैं भी जीवित होता।
हे वीणा वादिनी
हे वीणा वादिनी वर देदो
हम करते तेरा अभिनंदन
अज्ञानता को दूर करो तुम
जीवन उज्जवल हो जाए
हो धरती पर नया सवेरा
ऐसा ज्ञान का अमृत दो मां
कर दो तन मन मेरा पावन
हो स्वरों की खान तुम्ही मां
हो विद्या की दाता तुम्ही मां
श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित है मां
अहंकार से भरा है मानव
सद्बुद्धि का वरदान दो मां
वीणा पुस्तक अस्त्र है जिसके
मां सौम्य भाव से होती अर्जीत
बसंत पंचमी है जन्मोत्सव
मां ही वेद पुराणों में है
मां को जो प्रसन्न कर ले वो
अलंकारों से सुसज्जित हो
मां वरदानी कहलाती है
मां बुद्धिदात्री भी कहलाती है
मां विद्यारूपा भी कहलाती है
मां धरा के कण-कण में है
मां संगीतमय मां विद्यामयी है
मां सरस्वती है मां कलामयी है
मां वीणा पाणी का करलो वंदन
मां दूर करे सारें दुख के बंधन
हे वीणावादिनी वर दे दो
हम करते तेरा अभिनंदन
बसंत ऋतु
जब बसंत अपने रंग दिखलाएं
सबका मन खिल खिल जाएं
मस्ती में सब गाए गीत मल्हार
नाचे गाए सबका मन बहलाये
खिलकर फूल गुलाब यूं इठलाएं
चारों ओर मंद मंद खुशबू फैलाएं
प्रकृति भी नए-नए रूप दिखलाएं
सूरज की लाली हम सबको खूब भाएं
देख बसंत फूलों से लदी लताएं भी लहराएं
नीला आसमां सबके मन को हर्षाएं
नई उमंग लेकर नदियां भी बहती जाएं
चारों ओर हरियाली ही हरियाली छाएं
कल कल करते झरने मधुर संगीत सुनाएं
शीत ऋतु भी अब छूमंतर हो जाएं
कोयल गाती कुहूं कुहू, भंवरे करते गुंजार
रंग बिरंगी तितलियों, की आई बहार
होठों पर मुस्कान सजाएं ,प्रेम रस धोल
बसंत सीखाता हमको, ना बोलो कड़वे बोल।
फूलों ने सुगंध फैलाई, देखो बसंत ऋतु आई
देखो बसंत ऋतु आई ,देखो बसंत ऋतु आई
बापू के नाम पैगाम
बापू हमारे देश में
नेता है खादी के वेश में
प्रजातंत्र के रखवाले हैं
देश उनके हवाले हैं
किसान आत्महत्या करता है
शिक्षक काम के बोझ से मरता है।
जनता भूख से बदहाल है।
बापू देश का यह हाल है।
न्याय गूंगा-बहरा है।
जनसेवकों ने जनता को ठगा है।
जनतंत्र में भ्रष्टाचार है।
हर पत्र में यही समाचार है।
देश में संप्रदायवाद एवं जातिवाद है।
क्षेत्रवाद एवं भाषावाद है।
आतंकवादी एवं नक्सलवाद है।
परिवार वाद एवं अवसरवाद है।
देश में कोई बेईमान है।
फिर भी हमारा भारत महान है।
सड़कों पर लगता जाम है।
यह समस्या आम है।
नाम के लिए हर कोई मरता है।
काम कोई नहीं करता है।
बापू आजाद भारत की यह कहानी है।
यह हिंदुस्तान की जनता की जुबानी है।
कांटो की चुंभन
एक शहिद और गुलाब ने, एक जैसे गुणों को पाया,
चुंभन शूलों की सही ,पर गुलजार को महकाया ।
न धूप में बना कुरूप, काॅंटों में कोमल रहा,
गर्मी सर्दी हर ऋतु में ,खिलता वह पल-पल रहा।
आंधी वर्षा धूप में भी ,अस्तित्व को बचाया,
चुभन शूलों की सही, पर गुलजार को महकाया।
डाली से टूटकर सजा, कंठ का श्रृंगार बना,
जवा दिलों के काम आया, प्रेम उपहार बना।
स्वयं जुदा हो पौधे से, दो दिलों को मिलाया,
चुभन शूलों की सही, पर गुलजार को महकाया ।
फिर मुरझाया गया और खो गया वह पंखुड़ियां को लपेटे,
जिंदा है वो इत्र बन ,महक शीशी में समेटे।
मरकर भी जिंदा रहा और खुशबू को फैलाया,
चुभन शूलों की सही, पर गुलजार को महकाया ।
खाकी तुझे सलाम
तू ना कभी थकती ना डिगती है न रुकता तेरा काम,
नित चलती है बढ़ती है प्रगति पथ पर चाहे कोई हो मुकाम।
खाकी तुझे सलाम ,खाकी तुझे सलाम
तुझे जिस जिस्म पर है वो कर रहा रोशन तेरा नाम है,
कितने रूप देखे हैं तेरे कितने हैं तेरे नाम।
खाकी तुझे सलाम ,खाकी तुझे सलाम
कभी तू देती है ,संदेश मित्रता का,
कभी दिखाती ,भाव सेवा का,
कभी तू देती ,सुरक्षा का पैगाम।
खाकी तुझे सलाम खाकी तुझे सलाम
हर रंग रूप में तो निखरती है संवरती है,
हर मुश्किल वक्त में सदा तू तत्पर रहती है,
कोरोना के संकट के समय भी हमेशा की तरह तू आगे बढ़कर लड़ रही थी,
तूने ही भारत मां को जिताया है मानव जाति को बचाया है।
खाकी तुझे सलाम, खाकी तुझे सलाम
तू है तो शांति है तू है तो जीवन में चैन अमन है,
हर घर घर सब लोग सुरक्षित है खाकी तुझे सलाम,
वंदन है अभिनंदन है तुझको कोटि-कोटि नमन है।
खाकी तुझे सलाम है ,खाकी तुझे सलाम
कुंभ का मेला
क्या जिंदगी जैसे माटी का ढेला।
देखो देखो लगा कुंभ का मेला।।
है स्नान का दिन परम पुण्य पावन
तो फिर डुबकियों की है महिमा सुहावन
हर हर महादेव जय गंगा मईया
वही जिंदगी की है सबकी खेवईया ।।
यहां मां बाबूजी यहां चाचा चाची,
सभी आ गए हैं यहां कल्पवासी
धर्म कर्म की यह है जिंदगानी
भला कुंभ की किसने महिमा है जानी।।
कितनी सुहावन है यह ब्रह्मा बेला।
लगा कुंभ का मेला लगा कुंभ का मेला।।
उठो धर्म का जैसे रथ सज चुका है
यहां कुंभ का एक नगर बस चुका है
कभी वह ना भूलेगा सुख जिंदगानी का
जो मेले का एक बार रस चख चुका।।
सभी स्नान की और उन्मुख है देखो
भजन ज्ञान की ओर उन्मुख है देखो
बड़े -बड़े पुजारी सभी जाग गए हैं
सभी ज्ञान की और उन्मुख है देखो।।
गुरु है किसी का न किसी का चेला।
लगा कुंभ का मेला लगा कुंभ का मेला।।
मैं भारत का संविधान हूं
200 वर्ष की गुलामी से आजादी मिली।
मैं देश का पहला सबसे बड़ा विधान हूं ।
मैं २६ जनवरी१९४९ को पारित हुआ।
और २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ।
हमारा देश १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र हुआ।
देश के विशाल संविधान का बड़ा ऐलान हुआ।
संविधान पूर्ण होने में २ वर्ष ११ माह ८ दिन का समय लगा था।
विभिन्न देशों की गणतंत्र की समीक्षा का परिणाम हूं मै।
स्वतंत्रता, मौलिकता ,अनेकता में एकता।
मैंने आम से खास तक को दिया अधिकार।
मैं महान संस्कृति का होने वाला विधान बना।
सोचता हूं क्यों? मैं ना मिल पाया अपने देश में।
सबसे अद्भुत बनकर तैयार हुआ विधान हूं मैं।
मेरे निर्माता श्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बने।
जो अपनों की घृणा अपनत्व से आहत हुए।
गीता वेदों पुराणों का सार संजोए हुए हूं मै।
सुप्रीम कोर्ट मेरा रक्षक, मातृभूमि को चलाने वाला हूं।
मैं भारत का संविधान हूं, मैं भारत का संविधान हूं।
जय हिन्द,वंदे मातरम्।
गणतंत्र दिवस आया
26 जनवरी का दिन है गणतंत्र दिवस लाया।
आज के दिन देश में गणतंत्र आया।
संविधान लाया लोकतंत्र की छाया।
भारतवासी ने लोकतंत्र की शक्ति को पहचाना।
गणतंत्र से मिले कई अधिकार।
मताधिकार मिला जिससे बने हमारी सरकार।
देश अपना निर्मित नया विधान लाया।
भारत अपनी किस्मत का निर्माता बना।
इसके लिए जनता ने किए कई संघर्ष
गणतंत्र से मिला जनता को उत्कर्ष।
खुशहाली का नया रंग छाया।
भारत पर तीन रंग का तिरंगा लहराया।
भारत माता की जय का राग सुनाया।
भारत का भविष्य उज्जवल नजर आया।
आओ हम सब मिलकर ले प्रतिज्ञा।
सविधान की हर बात मानेंगे नहीं करेंगे अवज्ञा।
भारत माता की जय ,भारत माता की जय
अनमोल है बिटिया
एक अनमोल रत्न है बिटिया
खुशियों की सौगात है बिटिया
सुबह की पहली किरण है बिटिया
घर आंगन महकाती है बिटिया
मां की परछाई होती है बिटिया
दो परिवारों का मान बढ़ाती है बिटिया
सबके मुकद्दर में कहां होती है बिटिया
माता-पिता का दुख समझती है बिटिया
थोड़ी नटखट थोड़ी शैतान होती है बिटिया
संस्कार और शिक्षा से समाज को नई दिशा दिखाती है बिटिया
आत्मविश्वास के संग अपनी लड़ाई खुद लड़ लेती है बिटिया
मत कहो पराया इसे ये निश्चल निर्झर सी होती है बिटिया
पिता के लिए मां जैसी भाई के प्राणों में बसती है बिटिया
पल में हंसती पल में रोती भावों में जीती है बिटिया
फूलों से कोमल प्यारी सी पापा की परी होती है बिटिया
मुकद्दर से ही सिकंदर होते है जिसके घर होती है बिटिया
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
देश का लाल
सुभाष चंद्र बोस
मां के सच्चे सपूत
परमवीर निडर निर्भीक।
नेता जी कहते हैं वह
खून का मतलब नहीं है
जिसमें उबाल ना आए
देश के काम ना आ सके।
बिना जोश के कभी
महान कार्य संभव नहीं
मरने की इच्छा मन में हो
ताकि भारत जी सके।
शहीदों की तरह मौत तभी
स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो
ऐसे वीर सपूत की पूजा
होती घर-घर है।
सुभाष चंद्र बोस ने कहा
नैतिक विचारों की धारा
मैं कभी नहीं बहना है।
ऐसे महान तेजस्वी नेताजी।
नेता जी का नारा
तुम मुझे खून दो।
मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
कण-कण में राम
कण-कण में जहां श्रीराम बसे हैं।
हर मन -मन में श्याम बसे हैं।
हर पत्थर जहां शिव बन जाता है।
जहां नदिया बन जाती धाम है।
जहां पर्वत पिता सा साहस देता है।
यहां सागर विश्वास भर देता है।
हर पिता में दशरथ सा प्यार है।
हर मां में कौशल्या सी दुलार है।
धरा के कण-कण से मधुर लगाव है।
यहां शबरी का निश्चल भाव है।
यहां अंगद हनुमान की शक्ति है।
हर भक्तों की निस्वार्थ भक्ति है।
हर मानव जाति धर्म से ऊपर है।
केवट के हठी स्वभाव में प्यार है।
यहां हर त्यौहार दिवाली है।
हर मानव छल प्रपंच से खाली है।
कण-कण में ब्रह्मा विष्णु शिव शंकर है।
हर मानव में सदय, सहदय दयामय है।
दिव्यतम निष्कलुष पावन सीद्धीयों का धाम है।
यहां करुणामय करुणा सागर श्री राम है।
हर जन जन में श्याम बसे हैं।
हर कण-कण में श्रीराम बसे हैं।
जय श्री राम, जय श्री श्याम
सबके राम घर आए
आज सजा है दरबार राम का
जय जय श्री राम के नारों से
अयोध्या फिर से अवध बनी है
गूंज रहा भारत का कण कण।
आज अयोध्या नगरी सजाई है
घर-घर भगवा हर घर राम
राम राज फिर से आया है
हर्ष उल्लास जगा है हर घर में।
फिर से दीप जलाए हैं
धैर्य तपोवन दृढ़ भाव से
वो श्री राम कहलाए है
मन में राम हर पल राम।
अनुपम बेला कल की आई
मानो जैसे देव दिवाली आई
मिलकर सबने बलिदान दिया
इस भगवा को यह सम्मान दिया।
भगवा कर दो हर मन को अपने
राम आ रहे हैं फिर घर में अपने
आज सजा है दरबार राम का
जय जय श्री राम के नारों से।
जय श्री राम ,जय श्री राम

लता सेन
इंदौर ( मध्य प्रदेश )