ले डूबा मोबाइल सबको | Le Duba Mobile
ले डूबा मोबाइल सबको
( Le duba mobile sabko )
ले डूबा मोबाइल सबको, फिर मन का चैन चुरा डाला।
रिश्ते नाते गए भाड़ में, क्या फैशन नया बना डाला।
मां को बच्चों की नहीं चिंता, खोई बस मोबाइल में।
कामकाज घर के वो भूली, चैटिंग करती स्टाइल में।
सुघ बुध खोई कैसा आलम, बच्चा गिरा धड़ाम से।
दूध पिलाने वाली माता, मतलब रखे निज काम से।
नारी खोई है मोबाइल में, घर को कौन संभालेगा।
कोई बच्चों को बिगाड़ कर, अपना बैर निकलेगा।
माना मोबाइल जरूरत है, जिम्मेदारी भी ध्यान धरो।
गृहस्थ की डोर संभालो, ना गुणों का अपमान करो।
हुनर प्रतिभा काबिलियत, करामात कुछ दिखलाओ।
संस्कार गुण नव पीढ़ी भर, सफल गृहणी कहलाओ।
मोबाइल के चक्कर में, ये एकाकी जीवन हो जाएगा।
घर का सन्नाटा निशदिन, फिर नोच नोच कर खाएगा।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )