lekhni ki Dhaar
lekhni ki Dhaar

लिखेंगे हम लेखनी की धार

( Likhenge hum lekhni ki dhaar )

 

हम पैसे देकर रचना सुनो कभी नहीं छपवाएंगे।
दम होगा लेखनी में प्रकाशक खुद चले आएंगे।

लिखेंगे हम भी लेखनी की धार लोहा मनवाएंगे।
सृजन में शक्ति बड़ी अपार वो रस धार बहाएंगे।

सजाकर पुष्प भावों के हम गुलशन महकाएंगे।
दिलों तक दस्तक दे जाए वो तराने गीत गाएंगे।

वाणी दे हमको वरदान शब्दों का जाल बिछाएंगे।
साधक गूंथ रहे सुमन हार शारदे चरण चढ़ाएंगे।

महफिल महके बारंबार शब्द वो चुनकर लाएंगे।
कविता से गूंजे दरबार मां भारती शीश नवाएंगे।

ओज की कलम भरे हूंकार वीरों में जोश जगायेंगे।
काव्य की लेकर हम फुहार गीतों का रस बसाएंगे।

भावों की बहती चले बयार शब्द जादू दिखलाएंगे।
लाए अधरों पर मुस्कान वो कविता रचकर जाएंगे।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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