लाइन ऑफ फायर | Vyang
लाइन ऑफ फायर
( Line of fire : Hindi Vyang )
जनरल के नाम में ही रफ लगा है फिर उनसें साफ सुथरे व्यौहार की आशा करने वाला भोला राम ही हो सकता है। वैसे अब जनरल मुशर्रफ को अपने नाम के पहले जनरल के बजाय स्पेशल मुशर्रफ लिखना प्रारम्भ कर देना चाहिए।
बगैर बन्दूक के गोली छोडना उनकी आदत है। वे कभी दांये, कभी बांये, कभी नीचे तो कभी ऊपर उन्हें छोड़ते रहते है। उन्हें आगरा का ताजमहल देखना हो तो अटल जी से कहते है कि शिखर वार्ता रख ली जाये ।
अटल जी तो गांधीगिरी के लिये पलक पावडे बिछाये बैठे रहते है पर वह भाई है कि ताजमहल माइनस शिखर वार्ता करके उड़ जाता है । पर वाज है कि परवेज है। और अटल जी कटी पतंग के धागे की तरह नीचे गुड़ी मुड़ी हो कर लटक जाते है।
अटलजी को इस्लामाबाद से बड़ा प्रेम है। ब्रम्हचारी किससे प्रेम करेगा राजनीति से न। राजनीति उनके लिये नाराज नीति रही है। वे कोई राज नहीं रख नहीं रख पाये। राजों को नाराज करते रहे। कहने लगे हम बस से लाहोर जायेंगें ।
महाराज आपको कहा हवाई जहाजों की कमी थी पर नहीं गड्डो वाली सड़क पर खाये हिचकोले वाली बस में बैठकर लाहोर जाओगे तो वहां आपको कोई जार्ज बुश तोे स्वागत के लिये नहीं खड़े रहेंगें।
खैर, मूर्ख बनना हमारी आदत में शुमार हो गया है। हम लाख कहते रहें कि आतंकवाद वहां पनप रहा है पर वे कहेगें कि कश्मीर के कारण आतंकवाद पनप रहा है। कभी कश्मीर तो कभी बम्बई हो तो कभी लोकसभा कारण आतंकवाद पनपता है । उनके कारण नही ।
एक जनरल को आत्मकथा लिखने को विवश होना पड़ा। कहा होता तो हम बीस पच्चीस आत्मकथाकार वहां भिजवा देते। फिर वह आत्मकथा क्या है मिर्ची का बोरा है । “लाइन आफ फायर” तो चुराया हुआ नाम लगता है लगता है कोई और वहां झूठ बोलने के लिए तैयार नही ंथा जों मुर्शरफ को खुद बोलना पड़ा ।
इंग्लिश के रफ ने ऊर्दु के शरीफ (नवाज शरीफ) को पाकिस्तान से भगा दिया। एक और मोहतरिमा बेनजीर भुट्टो जान बचा कर भागी। मगर न बचा पाई जाल में पहुंचकर जन्नत पहुंच गई। अब अकेले पड़ गये जनरल मुर्शरफ अकेले ही तलवार भांज रहे है।
ऐसा क्या है “लादन आफ फायर“ में जो भारत का मीडिया चिल्लपों मचा रहा है मुझे तो वह कोई व्यंग्य की कृति लगती है। उसमें लिख है कि मुशर्रफ ने दो तीन इश्क फरमाये निकाह कें पहले। फिर वे इश्क परवान नहीं चढ़े जनरल औरतो से हार गये उन्होने हार कुबूल भी कर ली।
वे कारगिल की बातों को गोल मोल करके बतलाते है। यदि कहीं कांटा चुभा है तो उसे और अन्दर करने की क्या तुक ? हार गये तो हार गये। पहले भी हारे हैं आगें भी हारते रहेगें एक आदत सी बन गई है तू और आदत है कि नहीं जाती। ऊपर वाले पेराग्राफ में भी तो जो हारे है।
फिर वे कहते है कि आगरा-शिखर वार्ता असफल होने में कोई तीसरा व्यक्ति भी जिम्मेदार था। अब यदि दो आदमी बातें करते है तो उनके बीच में तीसरा भगवान होता है । वे तीसरे आदमी को भगवान/भगवानी बना रहे है।
उनका कहना है कि पाकिस्तान ने भारत की आठ सौ वर्ग किलोमीटर जमीन दबा दी है । डाकू खुद कबूल कर रहा है कि उसने डाका डाला ।
उस पर तुर्रा यह कि सजा न दी जाये। जनसंख्या सीमित करने का एक तरीका तो हमने देखा कि थोक में नसबन्दी की जावेे पर नागरिको को आंतकवादी बना कर जनसंख्या सीमित की जावे पड़ोसी मुल्क से ही सीखा जा सकता है।
लाइन आफ फायर के निशाने पर कौन है। कोई जार्जबुश या ब्रिटेन का प्रधानमंत्री तो नहीं प्राकृतिक रूप से भारत के निवृतमान प्रधानमंत्री या उपप्रधानमंत्री होंगें सो वे है। मगर उन दोनों को या भारत को गाली देने से एक भी रोना झड़ने वाला नहीं भले ही आपके ऊपर नीचे दायें और बांये के सारे वाल झड़ जावे।
आपने कहा कि भारत ने आपकी परमाणु बम बनाने की क्षमता की चोरी की है। आपको ला इलाज गलमफहमी है। एक तो भारत में सब एक दूसरे को रिश्वत भले की देते रहे दूसरे मुल्क को यहां के अखबार रिश्वत नहीं देने देंगें।
दूसरे हम किसी की अठन्नी चवन्नी नही उठाते उल्हास नगर में यहीं बनाते है फिर आपके एटम बम आपके लिये नही बनाये जा रहे अमेरिका के लिये बनाये जा रहे हैं एक को भी तो आप उपयोग करके देख ले सेठ नाराज हो जायेगा।
ये जों आपने इजहारे उधार किया है सो सही है कि पाकिस्तान अमेंरिका के रहमो करम पर पल रहा है इससे रंगा खुश हुआ कि तर्ज पर सेठ खुश हुआ होगा।
हमारे भारत वर्ष में हर गुंडा एक आत्मकथा हर दिन लिखता है यह धमकी देकर कि उससे कई बड़े राजनीतिको के राज फाश हो जायेंगे पर किसी के नहीं होते। भारत का प्रजातन्त्र एक आदमी पर टिका नहीं रहता। बाद में वह आत्मकथा चूल्हे में ईंधन के काम में आती है।
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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