मां बाप से मुंह मोड़ लिया

( Maa baap se munh mod liya )

 

लाठी के सहारो ने, बुढ़ी आंखों के नयनतारों ने।
घर के राजकुमारों ने, बेघर बना कर छोड़ दिया।

कैसा घोर कलयुग आया, स्वार्थ का यह दौर छाया।
सबसे प्यारी हुई माया, मां बाप से मुंह मोड़ लिया।

लूटपाट का चलन चला है, संतानों ने हमें छला है।
बांध दिया है घर के बाहर, जिंदा मरने छोड़ दिया।

मुंह के छोड़े हमने निवाले, जीवन झौंक दिए उजाले।
लाज शर्म की हदें पार कर, जीवन कैसा मोड़ दिया।

कितने देव पत्थर पूजे, हर ख्वाहिश पूरी की हमने।
बूढ़े मां-बाप हुए देखो, रिश्तों नातों को तोड़ दिया।

करूण व्यथा सुनकर, करुणाकर भी मौन हो चला।
कालचक्र ने करवट बदली, भाग्य भरोसे छोड़ दिया।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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