मां चंद्रघंटा | Maa Chandraghanta
मां चंद्रघंटा
( Maa chandraghanta )
तीसरा स्वरूप अदभुद माता का,
कहाती जो दुर्गा मां चंद्रघंटा।
मस्तक धारे मां अर्धचंद्र,
चमकीला रंग उनका स्वर्ण।
दस भुजाएं अस्त्रों से सुशोभित,
खड़ग, बाण शस्त्र किए धारण।
तीसरा नेत्र सदा खुला रहता,
बुराई से लड़ने की दिखाए तत्परता।
मां चंद्रघंटा का सिंह है वाहन,
शांति मिलती जो करे पूजन।
पूजा दूध से की है जाती,
खीर, मिठाई भोग में चढ़ती।
चंद्रखंडा, वृकवाहिनी नाम हैं,
चंद्रिका भी कही जाती है।
साहस और पराक्रम का प्रतिका,
प्रणाम स्वीकारो मां चंद्रघंटा।
नन्द किशोर बहुखंडी
देहरादून, उत्तराखंड
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स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक
वासंतिक नवरात्र तृतीय बेला,
शीर्षस्थ भक्ति शक्ति भाव ।
सर्वत्र दर्शित आध्यात्म ओज,
जीवन आरूढ़ धर्म निष्ठा नाव ।
चंद्रघंटा रूप धर मां भवानी,
शांति समग्र कल्याण प्रदायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।
साधक पुनीत अंतर्मन आज,
मणिपूर चक्र श्री प्रवेश ।
मां स्व विग्रह पूजन अर्चन,
दर्शन अलौकिकता परिवेश ।
युद्ध उद्यत मुद्रा मां जगदंबे,
दुःख कष्ट पाप मुक्ति नायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।
शीश अर्द्ध चंद्र शोभना,
सिंहारूढ़ मनमोहनी छवि ।
दशम कर खड्ग श्रृंगार,
दूर मंगल दोष कर पवि ।
मां असीम कृपा दृष्टि नित,
बाधा संघर्ष हल परिचायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।
अनुभूत सुरभि स्वर लहरी,
मां अनूप स्तुति साधना ।
सुख समृद्ध विमल जीवन ,
परिपूर्ण मनोवांछित कामना ।
वीरता पराक्रम वर संग मां,
सौम्यता विनम्रता विधायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यःफलदायक ।।
नवलगढ़ (राजस्थान)
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नवदुर्गा में तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा का पाया,
रूप अलौकिक चमत्कारी इनकी है अदभुत माया।
स्वर्ण आभा युक्त अद्भुत सुनहरी इनकी काया,
पापी राक्षसों के संहार करने ही इनका यह रूप आया।
सिंह पर सवारी करती चंद्रघंटा माता,
इनके क्रोध के सामने कोई टिक नहीं पाता।
दसों भुजाओं में आयुध धारी भयंकर दुष्टों को संहारे,
मस्तक पर चंद्राकार घंटा जिसकी आवाज असुरों को मारे।
भक्तों की भयहारिणी दुष्टविनाशिनी माता चंद्रघंटा,
दुष्ट जन कांप है जाते जब बजाती माता घंटा।
एक ओर यह महाभयंकर असुरों को संहारे,
दूजे उनकी कृपा उनके भक्तजनों को तारे।
जग में सुख शांति और निर्भयता पाने इनकी करो आराधना,
मां चंद्रघंटा की कृपा से होगी पूरी सारी मनोकामना।।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )