मां तुम रोना मत | Maa Tum Rona Mat
मां तुम रोना मत
अब अगले जन्म में मिलना
मैं बनने वाला हूं
किसी भी पल लाश
यहां बस जंगल हैं
गीदड़, कुत्ते, भेड़ियों के दंगल हैं
खा जाएंगे नोच –
मेरी देह को
तुम्हें मेरी मिट्टी भी नहीं मिलेगी
वहीं अपने खेत की मिट्टी को
अपनी छाती से लगा लेना
मुझे राजा बेटा कह- कह
पुकार लेना
मां मत रोना
मुझे याद है
जब पहली बार तुम
खेत ले गई थी
मैने ठुमक – ठुमक कर
तितलियां पकड़ी थी
तुझसे उड़ती चिड़िया मांगी थी
तुमने दूब की चिड़िया बना
मेरे नन्हें हाथ सौंपी थी
और कहा था
हे चिड़िया तू जा
मेरे बेटे की चिड़िया
तुमसे ज्यादा सुंदर है
यह सब तुमने ही तो बार – बार
मुझे बताया था
तुम अब कैसे उतारोगी कर्जा
वह खेत बेच देना
जहां तुमने और पिता जी ने
मिलकर लगाए थे
आम और जामुन के पेड़
पहले पके आम और जामुन
भीलनी की तरह चख
तुम मुझे खिलाती थी
वो पेड़ मेरी तरह
प्रेम की निशानी है
मुझे बतलाती थी
खेत लेने वाले से
साफ़- साफ़ कह देना
पहली पकी
अम्बियां और जामुन मैं लूंगी
मेरे बेटे को खाने को दूंगी
इन पेड़ों को कतई काटने न दूंगी
वो खेत न बेचना
जिसकी मोटी डाल पर
पिता जी झूलते मिले थे
कर्ज के बोझ से डरे
मैं वो कर्ज उतार देता
छोटी को पढ़ने शहर भेजता
तेरी सूनी कलाइयों को
खाली गले को
गहनों से भर देता
तुझे उस देश बुला
सुंदर – सुंदर झीलें दिखाता
किसी बड़े होटल
अपने हाथ से खाना खिलाता
जैसे तुम खिलाती थी
मेरी लाश के लिए
अब और कर्ज मत लेना
मैं तुम्हें दिखता रहूंगा
अपनी गाय को दुहता
बछड़े को सहलाता
बाजरे के खेत से चिड़िया उड़ाता
जब तुम उदास होगी
तेरे पास बैठ तुझे हंसाता
तुम बीमार होगी
भर – भर बाल्टी पानी लाता
घर की छत पर
पतंग उड़ाता
मैं ईश्वर से कहूंगा
इंतजार करे
इतनी जल्दी मुझे धरती पर न भेजे
हर जन्म तेरी कोख मिले
वतन चाहे…..
कोई मिले
पर तू रोते हुए मुझे न भेजे
किसी भेड़ियों के देश में
जो चबा जाते हैं
भूखे – प्यासे इंसान को
कुछ डॉलर के लिए
हे मां , तेरे पिलाए दूध से बना रक्त
अब सब बह गया है
कोई मरने वाला है
हुआं- हुआं बोल गीदड़
जंगल को कह गया है
पर तू रोना मत
बलवान सिंह कुंडू ‘सावी’
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