मै इक सोनार हूँ
मै इक सोनार हूँ

मै इक सोनार हूँ

( Main Ek Sonar Hun )

 

मै इक सोनार हूँ जिसकी चाहत जग वैभव से भरा रहे।
इस  जग  के  सारे  नर नारी स्वर्ण आभूषण से लदे रहे।

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मेरी शुभ इच्छा रही सदा हर इक घर में मंगल गीत बजे।
या  तेरी  हो  या  मेरी  हो  माँ  बहन  बेटियाँ  सजी र हे।

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हम मंगलमुखी धरातल के मंगल की चाह सदा रखते।
हम ऐसी जाति से आते है जो तेरी खुशी मे खुश रहते।

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हम  प्रेम  भाव  से  बँधे  हुए  सौन्दर्य कामना करते है।
इस जग की हर इक नारी में लक्ष्मी का दर्शन करते है।

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मैने जिसका निर्माण किया वो स्वर्ण आभूषण रत्नजडित।
माता का मुकँट या पैजनीया उसमें भी मुक्ता मडित दिया।

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कोई  भी  अंग  नही  बाकी  जिसको ना हमने स्वर्ण दिया।
जिस धातु को हम स्पर्श करे उसको ही कुन्दन रूप दिया।

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हम  थोडे  मे  सन्तुष्ट  रहे  कटु  वचनों  से  भी  छले  गये।
पर  शेर  ये  जो  स्वर्ण  जाति  है  तेरे  हित  में  ही रमे रहे।

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✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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