मगर
( Magar )
बेशक
जिंदा हो तुम अपने भीतर
जी भी लोगे हाल पर अपने
किंतु, क्या जी सकोगे घर के भीतर ही !
समाज जरूरी है
समाज और शहर के लोग जरूरी हैं
देश और जगत का साधन जरूरी है
बिना और के जीवित रहना संभव ही नहीं
तब भी तुम्हारा यकीन किसी पर नहीं
नजर में सही कोई भी नहीं
गद्दारी ,बेवफाई ,धोखे से भरी दुनिया है सारी
तब, क्या तुम इस दुनिया मे नहीं रहते…!?
कौन होगा तुम्हारा
जब तुम किसी के नहीं हो सकते
कौन समझेगा काबिल तुम्हें अपने
जब कोई तुम्हारे काबिल ही नहीं होगा
क्या यही जिंदगी है
क्या यही जीवन है
क्या दोगे नसीहत अपने बच्चों को
कैसे करोगे निर्माण उनके भविष्य का…!!
कभी सोचा है तुमने कुछ
बदलोगे नहीं जब तक चश्मे
का रंग
तुम्हें धुंधला ही दिखाई देगा
आंखें खोलोगे तभी हर रंग नजर आएंगे
जिंदगी हसीन है
सोच को बदलना होगा मगर
( मुंबई )