महेन्द्र सिंह प्रखर के मुक्तक | Mahendra Singh Prakhar ke Muktak

( 12 )

हमें तो बोलना भी माँ सिखाती है सुनों हिंदी ।
सभी स्वर के अलग लक्षण बताती है सुनों हिंदी ।
रहूँ मैं दूर क्यूँ इससे सभी हैं काम रुक जाते –
हमारी तो सभी खुशियां दिलाती है सुनों हिंदी ।।१

( 11 )

नहीं भाषा गलत कोई मगर पहचान है हिंदी ।
हमारी सभ्यता का नित करे व्याख्यान है हिंदी ।
इसी में तो समाहित आज हिंदुस्तान है सारा –
तभी तो हिन्द की देखो बनी अभिमान है हिंदी ।।२

( 10 )

पैसा आगे रिश्ता पीछे , देखा जग की रीति ।
आज समझ लो दुनिया सारी , कहीं नही मनमीत ।
किसको दोगे आज दुहाई , समझे मन की पीर –
परछाई भी साथ छोड़ती , गा ले मन के गीत ।।

( 9 )

प्रतिभा अपनी मैं यहाँ , कैसे करूँ बयान ।
दिया सभी गुरुदेव का , है यह सारा ज्ञान ।
नित्य शरण उनकी रहा , मानो यही प्रमाण-
आज मुझ मन्दबुद्धि को , समझे सब इंसान ।।

( 8 )

अपनी प्रतिभा से करो , गुरुवर का सम्मान ।
हृदय नही अभिमान हो , रहे शरण जो ध्यान ।
उनके ही आशीष से , होगें हम विख़्यात-
शिक्षा देकर जो हमें , दिए अभय वरदान ।।

( 7 )

नित सुबह शाम सुमिरन करके , करता रहूँ प्रणाम
घर-घर में हैं बने शिवाले, जिनमें हैं श्री राम
जन-जन में पैगाम यही दो, अपने है भगवान-
मत मिट्टी के माधव बनना , साथ खड़े घनश्याम ।।

( 6 )

बहन ये आज भाई के लिए उपहार लायी है ।
बँधा लो हाथ पर राखी बहन यह प्यार लायी है ।
हमारे तो लिए भाई तुम्हीं जागीर हो सारी –
तुम्हारा मान हो जग में बहन यह हार लायी है ।।

( 5 ) 

तुम्हें ही देखकर हमने यहाँ जीवन गुजारा है ।
तुम्हें चाहें सदा ही हम तुम्हारा ही सहारा है ।
खुदा जाने नहीं होता गुजारा अब तुम्हारे बिन_
तुझे तो खोज के हमने फलक से अब उतारा है ।।

( 4 )

आज मिलन में पूरी कर दो , गिरधर मेरी साध ।
वही सलोना श्याम मनोहर , दर्शन दियो अगाध ।
मैं बालक तुम स्वामी मेरे , हरिजन का हूँ दास –
आज शरण में हो जब वंदन , दो बिसरा अपराध ।।

( 3 )

सो जाते जो लोरी सुनकर , अब माँगें अधिकार ।
सोचो कैसे बदल गये है , अब सब के संस्कार ।
नही किसी का ध्यान किसी को , नही किसी का मान –
ऐसे भी अब देख रहें हैं , घर-घर में परिवार ।।

( 2 )

मुझ सैनिक के पास , बहन की राखी आयी ।
देख उसे अब आज , याद वैशाखी आयी ।
बहनों का ही प्रेम , जगत में सबसे ऊपर –
यही बताने बात , घरों से पाती आयी ।।

( 1 )

करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक ।
थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक ।
इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा ।
लेता है यह कौल , देश का सैनिक दैनिक ।।

ये भी हैं इंसान , हृदय इनके भी होते ।
यह मत सोचों आप , चैन से सैनिक सोते ।
कुछ मत पूछो याद ,उन्हें जब घर की आती-
किसी किनारे बैठ , सिसक कर वह भी रोते ।।

लिए तिरंगा हाथ , बढ़े सैनिक जब आगे ।
बढ़े देश की शान , खौफ़ से दुश्मन भागे ।
ऐसे वीर जवान , देश में मेरे अपने-
सुनकर दुश्मन आज, रात भर अपना जागे ।।

मुझ सैनिक के पास , बहन की राखी आयी ।
देख उसे अब आज , याद वैशाखी आयी ।
बहनों का ही प्रेम , जगत में सबसे ऊपर –
यही दिलाने याद , घरों की पाती आयी ।।

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

यह भी पढ़ें:-

महेन्द्र सिंह प्रखर के दोहे | Mahendra Singh Prakhar ke Dohe

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