जिंदगी किरदार से ज्यादा कुछ नहीं

( Zindagi Kirdar se jyada kuchh nahin )

 

जिंदगी किरदार से ज्यादा कुछ नहीं।
बंदगी प्रभु प्यार से ज्यादा कुछ नहीं।
रंगमंच यह दुनिया का भव सागर है।
झूठा है यह संसार ज्यादा कुछ नहीं।

नश्वर यह तन काया ज्यादा कुछ नहीं।
झूठी है ये मोह माया ज्यादा कुछ नहीं।
रह जाते हैं दो बोल मीठे नर धरती पे।
तू खाली मुट्ठी आया ज्यादा कुछ नहीं।

कर ले नर शुभ काम ज्यादा कुछ नहीं।
होगा दुनिया में नाम ज्यादा कुछ नहीं।
खिड़कियां घट की जरा तू खोल दे नर।
मन हो वृंदावन धाम ज्यादा कुछ नहीं।

सुंदर सुबहें हो शाम ज्यादा कुछ नहीं।
रवि चलते अविराम ज्यादा कुछ नहीं।
चलते रहना सुहाना सफर जिंदगी का।
कब हो जाए ये शाम ज्यादा कुछ नहीं।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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