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ऐसी होती है महिला | Mahila

ऐसी होती है महिला

( Aisi hoti hai mahila )

 

दुःख को आधा कर देती और आनन्द को दोगुना,
ऐसी होती है महिला मां बेटी पत्नी एवम बहिना।
सबके घर वंदनवार सजाते जब आये यह अंगना,
बिगड़े काम संवार देती ये बात है सबका कहना।।

साहस संयम और करूणा जिसमें है यह भरमार,
तकदीर पुरूषों की बदल देती ऐसी होती है नार।
आदर सम्मान करों साथियों इन बातों पर विचार,
समझती है अपनें पति को यें नारी सभी भरतार।।

रिश्तों पर जब जब संकट आता यही देती सहारा,
पति की लंबी उम्र हेतु भूखी रहती वो दिन सारा।
ज़िंदगी की नैय्या पार लगाती इसका क्या कहना,
नित्य वही अन्नपूर्णा बनकर खाना बनाती प्यारा।।

हर दुःख सुख में हिस्सा बनती यही है बड़ी माया,
बाबुल का घर छोड़कर ये दूजे-घर नाम कमाया।
मन वाणी संयम से सबका दिल जीत दिखलाया,
अपनें पांव जमाकर इसने यह वंश आगे बढ़ाया।।

माॅं जगदम्बे का अंश है इसमें सरस्वती सी काया,
सारा जग इसकी है माया एवं इसी की परछाया।
सफलता दिलाती है सबको पिता पति एवं भाया,
अनसुलझी अनेंक पहेलियां इसने ही सुलझाया।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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