महकेगा आंगन | Mahkega Aangan
महकेगा आंगन!
( Mahkega aangan )
निगाहों में मेरे वो छाने लगे हैं,
मुझे रातभर वो जगाने लगे हैं।
दबे पांव आते हैं घर में मेरे वो ,
मुझे धूप से अब बचाने लगे हैं।
जायका बढ़ा अदाओं का मेरे,
होंठों पे उँगली फिराने लगे हैं।
तन्हाई में डस रही थीं जो रातें,
रातें मेरी वो सजाने लगे हैं।
जेठ के जैसा तपता बदन था,
बन करके सावन भिगोने लगे हैं।
लाज- हया संग खता रोज होती,
दरिया उतर कर नहाने लगे हैं।
हुस्न औ इश्क की फिजा ही अलग है,
नया -नया नुस्खा आजमाने लगे हैं।
मेरे दर्द-ए-दिल की दवा बन चुके वो,
मोहब्बत का जाम पिलाने लगे हैं।
मैं हूँ जमीं उनकी, आसमां वो मेरे,
तजुर्बा मेरा वो बढ़ाने लगे हैं।
महकेगा आंगन फूलों से मेरा,
इशारों – इशारों में बताने लगे हैं।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई