मैं भी था | Main Bhi Tha
मैं भी था
तुम्हारे हुस्न-ओ-अदा पर निसार मैं भी था
तुम्हारी तीर-ए-नज़र का शिकार मैं भी था
मेरे गुनाह ख़ताएं भी फिर गिना मुझको
तेरी नज़र में अगर दाग़दार मैं भी था
बहुत ही ख़ौफ़ ज़माने का था मगर सचमुच
तुम्हें भी अपना कहूँ बेकरार मैं भी था
यक़ी न होगा तुझे पर यही हक़ीक़त है
हसीं निगाहों का तेरी शिकार मैं भी था
तमाम रात किया इंतज़ार मैंने भी,
न सिर्फ़ चाँद अकेला तो यार मैं भी था।
मेरी रगों में वो बहता रहा लहू बन कर
सो माँ के दूध का कुछ क़र्ज़दार मैं भी था
ग़ुरूर से नहीं झुकने से नाम हो मीना
ख़ुदा की राह का इक ख़ाकसार मैं भी था

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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