मैं गीत नहीं गाता हूॅ | Main Geet Nahi Gata Hoon
मैं गीत नहीं गाता हूॅ
( Main geet nahi gata hun )
शब्दों का खेल रचाकर,
मन अपना बहलाता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
कवि कर्म नहीं कुछ मानूॅ,
रचनाधर्मिता न जानूॅ,
भावों की धारा में बह
सुख से समय बिताता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
मन दूर जगत से जाता,
आनन्द हृदय है पाता,
अनजानी क्षुधा मिटाने
कुछ मन-मोदक खाता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
कुछ जाने क्या हो जाता,
सम्मोहन सा है आता,
कैसे ऐसा हो जाता,
कुछ भी न जान पाता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
लगता है पास में बैठा,
शब्दों में जाता पैठा,
मैं उसकी इच्छा से ही,
अक्षर-जोड़ लगाता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
संभव वरण्य यह होंगे,
निश्चित नगण्य यह होंगे,
फिर भी क्षुद्र नीर धारा,
सिकता बीच बहाता हूॅ।
मैं गीत नहीं गाता हूॅ।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)