लक्ष्य पर संधान
( Lakshya par sandhan )
रास्ता बहुत कठिन था हमारा
पर मंजिल पाना ज़रूरी था हमारा।
तलब थी यही इस मन में जो हमारी
कोई अनहोनी ना हो जाएं इच्छा थी हमारी।।
मज़बूत था इरादा और पक्का था हमारा वादा
जिन्दा पकड़ आएं तो ठीक नही तो फिर शूट।
देश आन्तरिक हिफाज़त जो हमें करना
फिर खून-खच्चर से हमको क्या डरना।।
काॅंटो का जंजाल और बीहड़ था सारा
विचलित करती आवाजें था गन्दा नाला।
पर हम बिलकुल भी नही घबराएं
खोज तलाश मे लगे रहे हम सारे।।
आँधी और तूफ़ान के बीच डयूटी थी हमारी
बादल बरसे बिजली कड़की छाई थी रात ॲंधेरी।
पथरीला था रस्ता कई बार पांव फिसला हमारा
पर हम बिलकुल भी नहीं घबराएं।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )