मैं हूँ दीपक एक बदनाम सा
मैं हूँ दीपक एक बदनाम सा
जलता सदा तम से जंग के लिये
रात बढ़ती रही बात गढ़ती रही
जिंदगानी कटी रोशनी के लिए
इस कदर यूँ ना हमसे नफरत करो
हम भी परछाई है इस वतन के लिए
सत्य की परख असत्य की हर खनक
जलाती बुझाती रही नई रोशनी के लिए
अज्ञानी हूँ सोचता समझता भी नही
दिल मचलता सदा अंतिमजन खुशी के लिए
हर भूख भी मिट गई प्यास भी मर गई
होना है रोशन मुस्कराती किरण के लिए
जब से चेहरे पर चेहरे हुए नकबपोश है
गिरगिटी जमघट जमा खूनी अमन के लिए
सूखी हर थाली हुई हर जेब खाली
रोटी बदनसीब हुई पेट की अगन के लिये
आंधी बवंडर आते रहँगे सदा
टिमटिमाता मिलूंगा मानवता धर्म के लिए
ना बुझा हूं अभी कर लो कोशिश यूँ ही
लड़खड़ाकर फिर फिर जलूँ रोशनी के लिए
कंटक पथ राह घनघोर अंध
हर जतन मैं करूंगा न्याय यज्ञ के लिए
दीपक का कर्म पथ तम से बेखोफ लड़
दीपक हूँ जलूँगा सदा सद नमन के लिये
अंतिम घर हो उजाला हो असत का शमन
दुआ मांगता सदा अमन के चमन के लिए
डाक्टर दीपक गोस्वामी मथुरा
उत्तरप्रदेश ,भारत
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