मेरा और उसका गुमान
मेरा और उसका गुमान
वो अपने को सरेख समझ,
मुझे पागल समझती रही,
अब देख मेरी समझ,
उसके तजुर्बे बदल गए,
अब मुझे ज्ञानी समझ ,
अपने को अज्ञानी समझ रही।
कुछ शब्द बोल माइक पर,
अपने को वक्ता समझती रही,
अब मंचों पर देख शब्दों का सिलसिला मेरा,
अपने को श्रोता समझ रही ।
कल तक वो कुछ विद्यार्थियों को यूट्यूब से पढ़,
पढ़ा अपने को टीचर समझती रही ,
अब लेख पढ़ मेरा अपने को,
विद्यार्थी समझ रही।
जवाब न दे कर उसका,
मैं खामोश रहता था,
अब मेरी खामोशी,
उसका जवाब बन गया,
यूं ही था उसको अपने पर गुमान,
पर अब गुमान है क्या,
अब वो समझ रही ?
लेखक– धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218