मैंने सीख लिया
मैंने सीख लिया
मन के भावों को होंठों पर लाना मैंने सीख लिया
लफ़्फ़ाज़ी में लोगों को उलझाना मैंने सीख लिया
पहले थोड़ा डर लगता था फ़िर बेशर्मी ओढ़ी तो
खुलकर हर महफ़िल में आना-जाना मैंने सीख
सच्चाई में जीना मुश्किल अच्छे-अच्छे डूब गए
भर-भर थाली घोटालों से खाना मैंने सीख लिया
शेख़ असल हूँ पीना छोड़ो छूना तक मंज़ूर नहीं
बंद घरों में छुप हिस्से का जाम उठाना सीख लिया
रिश्तों की पाबंदी तोड़ी नाते सारे चूर किये
ख़ूब सफ़ाई से सबको बहकाना मैंने सीख लिया
देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा
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