मकर संक्रांति | Makar Sankranti
मकर संक्रांति
( Makar Sankranti )
( 2 )
मकर संक्रांति का है पर्व महान,
है यह समर्पित सूर्य भगवान।
कहें लोहड़ी, खिचड़ी उत्तर में,
पूर्व बिहू,दकन पोंगल से जान।।
पौराणिक सुने एक कथा महान,
श्रीहर्ष आते, करते कुम्भ स्नान।
अपना संचित सब धन औ धान्य,
सब याचकों को कर जाते दान।।
हम भी ब्रह्म मुहूर्त में कर स्नान,
अर्क देकर पूजै सूर्य भगवान।
तिल लड्डू, गुड़,खिचड़ी का ,
भोग लगा, दें वंचितों को दान।।
भगवानदास शर्मा ‘प्रशांत’
शिक्षक सह साहित्यकार
इटावा उत्तर प्रदेश
( 1 )
मकर संक्रांति पर्व सुहाना,
स्वच्छंद रूप से पतंग उड़ाना।
उत्तरायण हुए सूर्य देवता,
इनको हृदय से अर्द्ध चढ़ाना
दान पुण्य खिचड़ी कर आना,
पावन सरिता में डुबकी लगाना।
मन में जगा कर प्रेम-भाव को,
सबको मन से तिल गुड़ खिलाना।
रंग- बिरंगी मोहक पतंगों से,
सजा ये नीला-नीला आसमान।
बच्चे ,वृद्धजन और नवयुवक की
खुशियों का है नहीं कोई अनुमान।
मकर संक्रांति की पावन बेला,
तिल -तिल बढ़ते जाते हैं दिन।
मद्धिम -मद्धिम बढ़ती है धूप,
मुस्कुराती सूर्य की चंचल किरण ।