Hindi Poetry -माना तुम अपने हो पर गिरवी कैसे ईमान रख दूं
माना तुम अपने हो पर गिरवी कैसे ईमान रख दूं
( Mana Tum Apne Ho Par Girvi Kaise Iman Rakh Doon )
माना तुम अपने हो पर गिरवी कैसे ईमान रख दूं ,
बेहाया तुम्हारे हाथो में कैसे हिंदुस्तान रख दूं ।
जलते हो तपते हो गलते हो पर मुल्क से बड़े नहीं हो,
तिरंगे का मान रखा नहीं तुम्हें कैसे किसान कह दूं ।
तुम सोच रहे हो आज बड़ा काम किए हो ,
तिरंगे का अपमान कर बड़ा नाम किए हो ।
मगर अपने अपराधियों से हरकत से तुम,
शहीदों की परम्परा को बदनाम किए हो।।
ऐसा उपद्रव और आतंक हमे स्वीकार नहीं है,
अपराधियों को किसान होने का अधिकार नहीं है ।
जिस वजह से झुके तिरंगा ओ वजह ही मिटा दो ,
किसी भी आग्रह का शर्त तिरंगे का तिरस्कार नहीं है।
हिदायत है कि तुम सब मिलकर विचारो,
कुर्सी कलम हल बल मिलकर कर चारो ।
तिरंगे तक कैसे पहुंचा कोई क्या तुम सो रहे थे,
कहा चूक हुई क्या गलती हुई जल्दी सुधारो ।।