माँगने लगे | Mangne Lage
माँगने लगे
( Mangne lage )
जो देखे थे कभी, सभी वो ख़्वाब माँगने लगे
वफ़ाओं का भी हाय, वो हिसाब माँगने लगे
कली-कली को चूमते थे भौंरे शाख़-शाख़ पर,
मगर जो देखे गुल तो फिर गुलाब मांगने लगे।
भुलाके राह सच की, थे गुनाहों के जो देवता
मुसीबतें पड़ी तो वो निसाब माँगने लगे
चले वफ़ा की राह तो मिले हैं ज़ख़्म सैकड़ों
मिला सबक़ हमें तो फिर अज़ाब माँगने लगे
नहीं पढ़ा कभी-भी मेरा हाले-दिल या दर्दो-ग़म
वो ज़िंदगी की मुझसे पर किताब माँगने लगे
ज़रा किसी ने कह दिया सितारा और फिर तो वो
ख़ुदा से मरतबा-ए-आफ़ताब माँगने लगे
बसे थे धड़कनों में और ज़िंदगी भी थे मेरी
सताने आए और इंतिख़ाब माँगने लगे
बसे विदेश में थे आख़िरी जो वक़्त आ गया
वो चूमने को देश की तुराब माँगने लगे
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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