Mazdoor par Kavita
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मजदूर है मजबूर

( Mazdoor hai majboor )

 

जो मज़दूर था वह आज मजबूर हो गया,
न रहा कोई काम वह बेरोजगार हो गया।
निर्भर था पूरा परिवार उसकी दिहाड़ी से,
रोज़गार उसके हाथ से सारा दूर हो गया।।

 

इस महामारी को लेकर आया था अमीर,
आज इस मज़दूर को बेचना पड़ा ज़मीर।
पुश्तैनी ज़मीन, गहना गिरवी रखना पड़ा,
लाचार इस ग़रीब को बनना पड़ा फ़कीर।।

 

मेहनत करके कमाता फिर पेट यें भरता,
वर्षा तेज़ धूप व ठण्ड कड़ाके की सहता।
क्या करें बेचारा किस्मत ने तमाचा मारा,
नही आज कुछ खानें को इसलिए मरता।।

 

थोड़ा खाओ तरस यारो करें इनकी मदद,
दिखाओ थोड़ा दया भाव बदलो स्वभाव।
इन्ही श्रमिको से चलता सब का करोबार,
पैदा करते है खेतो में धान एवं रहते गांव।‌।

 

सभी श्रेष्ठ होते है इंसान चाहे छोटे व बड़े,
एक दूसरे के मेल मिलाप से होते है खड़े।
उंगुली थाम के अपनो की चलना सीखते,
कोरोना व सूखे के कारण गरीब दबे पड़ें।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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