मेरा भारत !

( Mera Bharat ) 

 

बिछाकर आँख सबको जोड़ता है भारत,
दुनिया को साथ लेकर चलता है भारत।
कितने टूट चुके हैं देखो, दुनिया के तार,
सारे जहां का साज रखता है भारत।

पामाल हो चुके हैं न जाने कितने देश,
सब में इंकलाब भरता है भारत।
झुका देता है नील गगन औरों की खातिर,
नहीं किसी का ताज ये छीनता है भारत।

आफत-विपत्ति में आंसू पोंछता है सभी का,
वसुधैव कुटुम्बकम का दामन पकड़ता है भारत।
तीन तरफ से सागर उतारता है आरती ,
खार-ए-जहां में भी फूल खिलाता है भारत।

तरक्की की छांव में है रखता सभी को,
औरों का धंसा कांटा निकालता है भारत।
सरफ़रोशी की तमन्ना रखते हैं देशवासी,
विघ्न-बाधाओं को चूमता है भारत।

तीनों काल को लिए मुट्ठी में फिरता,
औरों की खातिर गरल पीता है भारत।
तप-त्याग,सहनशीलता भरी है कूट-कूटकर,
छल-कपट से कोसों दूर रहता है भारत।

रंग रहे हैं देश कितने लहू से धरा,
अमन-शांति का पैगाम देता है भारत।
युद्ध का बीज न बोओ ऐ! दुनिया वालों,
सत्य-अहिंसा का मंत्र सिखाता है भारत।

मत छीनों किसी सुहागिन के माथे का सिंदूर,
महिलाओं को दुर्गति से बचाता है भारत।
हलाहल भरा है न जाने कितनों के दिल में,
युद्ध के उन्माद की अग्नि बुझाता है भारत।

अपनी फिजा में भरी है एक लज्जत,
सबका ये खैर मनाता है भारत।
गगन से नित्य फूल बरसाते हैं देवता,
चाँद-सितारों को रोज नापता है भारत।

जल-थल-नभ में सीना ताना है तिरंगा,
दुश्मन को ठोकर में रखता है भारत।
भव्यता, दिव्यता महकती जग-होंठों पे,
तभी तो विश्व-गुरु कहलाता है भारत।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

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