हिंदी | Poem on Hindi in Hindi
हिंदी
( Hindi )
हिंदी ही हिंद की पहचान रही
युगों युगों का यह सम्मान रही
भारत का यह अभिमान रही
भारत वासी का स्वाभिमान रही
ज्ञान रत भारत का गान हिंदी
हर भाषा का यही मूल ज्ञान हिंदी
जन जन के हृदय की तान हिंदी
आदि सनातन की पहचान हिंदी
हिंदी ने ही दिया हमे बंधुत्व भाव
हिंदी ने ही रखा आत्मिक लगाव
हिंदी मे व्याप्त सद्गुण स्वभाव
हिंदी ने सिखाया सभ्य बरताव
आर्य द्रविण सब की रही हिंदी
संस्कारों संग ही पली बढ़ी हिंदी
हिंदी ही देश का गौरव गान रही
बंधक भी सदियों तक रही हिंदी
आओ,इसे अब फिर से मुक्त करें
हर उपयोग मे इसे ही प्रयुक्त करें
विदेशी पर इतना क्यों नाज करें
हिंदी ही होगी अब, आगाज करें
माथे की बिंदी
( Mathe ki bindi )
संस्कृति की देन है हिंदी
सभ्यता की जननी हिंदी
देवों की भी भाषा हिंदी
भविष्य की आशा हिंदी
हिंदी ने सबका उत्थान किया
शुभ कर्म हेतु प्रस्थान किया
हिंदी से बढ़ा मान मानवता का
किया सदा,सम्मान सनातन का
हिंदी ने ही दिया ज्ञान विश्व को
हिंदी ने ही दिया विज्ञान विश्व को
शून्य भी निकला हिंदी की कोख से
हिंदी से ही मिला सम्मान विश्व को
कुछ आतंकी आकार हिंदी रौंद गए
हिंदी के आंचल मे खंजर घोप गए
गैर की भाषा से ही हिंदी घायल हुई
आधुनिकता मे जनता भी पागल हुई
अब फिर से हमको हिंदी लाना होगा
खोया सम्मान इसे फिर दिलाना होगा
हर मुख पर अब केवल हिंदी ही हो
जैसे,सुहागन के माथे की बिंदी हो
( मुंबई )