मिजाज | Mijaaj
मिजाज
एक लम्हे में कैसे मिजाज बदल लेते हैं,
यह जहां पल में रिश्ते तमाम बदल लेते हैं।
इतनी जल्दी तो मौसम भी नहीं बदला करते,
यह ऐसे बदलते जैसे लिबास बदल लेते हैं।
एहसास-ओ-जज़्बात से खाली हो गए हैं सारे,
ये मतलब के लिए तो ख़्याले-मीरास बदल लेते हैं।
तुम उनको जवाब देकर तो देखो एक दफ़ा,
हमारे अपने मिनटों में अपने सवाल बदल लेते हैं।
गुनाहों का एहसास आख़िर उन्हें होगा भी कैसे?
वो अपने गुनाहों से तो सवाब बदल लेते हैं।
पोशीदा-पोशीदा से रहते हैं अल्फ़ाज़ मेरे,
सोचते हैं लफ़्ज़ों से किताब बदल लेते हैं।
जदीदी को अपना ओढ़ना-बिछाना मानने वाले,
अक्सर बेखुदी में रस्मो-रिवाज बदल लेते हैं।
जहाँ से आए हैं वापस वही को हमें जाना है,
फिर क्यों हम कुदरत के हिसाब बदल लेते हैं।
आश हम्द
पटना ( बिहार )
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