मोल क्या दोगे | Mol kya doge
मोल क्या दोगे
( Mol kya doge )
यूं ही बरसती नही बूंद बादल से
याद है उसे सागर की गहराई
छूकर भी ऊंचाई को हर कोई
जमीनी धरातल को भूला नहीं करता…
चुका दोगे ली गई कर्ज की दौलत को
उस वक्त के एहसान का मोल क्या दोगे
कम पड़ जायेगी तुम्हारी उम्र सारी
बची जो लाज तब उसका मोल क्या दोगे..
संभले हो आज भी , जड़ की पकड़ से
उस औकात का मोल तुम क्या दोगे
जिसने सिखाया हो चलना तुम्हे
हाथों की पकड़ का मोल तुम क्या दोगे…
अकड़ किस बात की,गुमान किस बात का
दहलीज की रही का मोल तुम तुम क्या दोगे
अभी तो किए हो शुरू चलना आज
आनेवाले कल का मोल तुम क्या दोगे…
जिंदगी ,चलती नही महज खयालों से ही
तुमसे जुड़ी उम्मीदों का मोल तुम क्या दोगे
आज समझ लो उभरे सवालों को तुम
कल तुम्हारे अपनों का मोल तुम क्या दोगे…
मोहन तिवारी
( मुंबई )