मुहब्बत की मुहब्बत से सदा
( Muhabbat ki muhabbat se sada )
दिल-ए-मुज़्तर की हया हो जैसे
लफ्ज़-ए-नस्र की अदा हो जैसे
जिस तरह से उसको याद करता हूँ
लगता है मुहब्बत की मुहब्बत से सदा हो जैसे
खुदा से ही ये इल्तेजा हो जैसे
एक नासीर कहाँ जाए अश्क-ए-नदामत लिए
तलाश है और कहीं राह-ए-वफ़ा हो जैसे
मुहब्बत-ए-रसूल के दर्मिया तुझे मेरी याद नहीं आयी
और मुझे लगा में ही बेवफा हूँ जैसे
उसके आंखें दुआ-ए-नूर के शफा हो जैसे
लफ्ज़-ए-मुहब्बत ही हम से खफ़ा हो जैसे
बदनाम-ए-ज़माना है मुहब्बत की कमाई में
फ़क़त मुहब्बत एक शायर से ही रुसवा हो जैसे
इश्क़-ए-मुर्शिद के अश्क बेष कीमती है ‘अनंत’
मत बहाया करो नशा-ए-शबाब को इस तरह
कुदरती तौर पे मिला हुआ दरिया हो जैसे
शायर: स्वामी ध्यान अनंता