मुहब्बत के जब से ही वो गुलाब टूटे है | Muhabbat shayari
मुहब्बत के जब से ही वो गुलाब टूटे है
( Muhabbat ke jab se hi wo gulab tute hai )
मुहब्बत के जब से ही वो गुलाब टूटे है
अंदर से ही खूब हम भी ज़नाब टूटे है
ज़वाब देता नहीं था मुहब्बत का मेरी
लबों पे ही आज उसके ज़वाब टूटे है
मुहब्बत के खुल गये राज़ थे छिपे दिल में
सभी उसके वो लबों से हिजाब टूटे है
नशा किसी की चढ़ा बेवफ़ाई का ऐसा
न ही लबों से वो जामे शराब टूटे है
नींदो से वो हो गये है पराये जीवन भर
कभी देखे प्यार के जो वो ख़्वाब टूटे है
उल्फ़त का तोड़ गया है कोई मुझसे रिश्ता
निगाहों से इस क़दर आज आब टूटे है
मुहब्बत की फैली खुश्बू किसी साँसों की ही
किसी आज़म हुस्न से वो शबाब टूटे है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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